Wednesday 28 August 2013

प्रेम ! तुम कृष्ण ही रहे ……

 

मै  बस्स 
नींद में बहली 
मै बस्स  ख्व़ाब में चली 
मै पारिजात की डाल
 पर कांपती कली 
स्नेह के दुश्मन 
काँटों संग पली 
और प्रेम!
तुम मुझे नहीं मिले 
प्रेम तुम कृष्ण ही रहे ……

तुम्हे कल्नाओं में जीती 
सचमुच  में आंसू पीती
जीवन डगर पर 
एकाकी बढ़ती रही
और प्रेम!
तुम मुझे नहीं मिले 
प्रेम तुम कृष्ण ही रहे ……
सोचती रही

राह ख़त्म होगी 
और बस एक अगले मोड़ पर
तुम और मै 
पर तुम कहाँ!
और प्रेम!
तुम मुझे नहीं मिले 
प्रेम तुम कृष्ण ही रहे ……

अब सोचती हूँ 
वह खुशबू 
जिसके सहारे काटे मैंने दिन 
वह धुन जिससे 
पाया मैंने आत्मबल 
वह टेक, वह सहारा 
वह सांझ, वह किनारा 
वह तुम  थे 
जो बहलाते रहे मुझे 
मुझसे दूर खड़े 
बिना कुछ पाने की आशा में 
पर मेरे खुशी के दिनों में 
मुझसे दूर 
और प्रेम!
तुम सचमुच  
 कृष्ण ही रहे ……
  

- सहबा 
 

Saturday 17 August 2013

ख्वाब के बाद




दिल की बंजर ज़मीन पर
फिर से उग रही है 

ख़्वाबों की गाजरघास 

यूं ही लहलहाएगी 

एक पूरा मौसम

और फिर  तैयार होगा 

अगली ठण्ड के

 अलाव का सामान

ख़्वाबों का 

इससे बेहतर इस्तेमाल
और क्या होगा

                               - सहबा जाफ़री 

Wednesday 14 August 2013



FILE
आज़ादी की कीमत उन चिड़ियों से पूछो 
जिनके पंखों को कतरा है, आ'म रिवाज़ों ने 
आज़ादी की कीमत, उन लफ़्ज़ों से पूछो 
जो ज़ब्तशुदा साबित हैं सब आवाज़ों में


आज़ादी की क़ीमत, उन ज़हनों से पूछो 
जिनको कुचला मसला है, महज़ गुलामी को 
आज़ादी की क़ीमत, उस धड़कन से पूछो 
जिसको ज़िंदा छोड़ा है, सिर्फ सलामी को 


आज़ादी की क़ीमत उन हाथों से पूछो 
जिनको मोहलत नहीं मिली है अपने कारों की 
आज़ादी की क़ीमत उन आंखों से पूछो 
जिनको हाथ नहीं आई है, रोशनी तारों की


जो ज़िंदा होकर भी भेड़ों सी हांकी जाती है 
आज़ादी भी रस्सी बांध के जिनको दी जाती है 
जिस्मों से तो बहुत बड़ी जो मन से बच्ची हैं 
'अब्बू खां की बकरी' भी उन से अच्छी है...

Friday 9 August 2013

ईद


सियासी गुफ़्तगू  यूँ  मत मनाओ ईद रहने दो 
बेनूरो रंगों बू यूं मत मनाओ ईद रहने दो 

न चाहत है, न राहत है, न साईत भी है चन्दा की 
ऐसे  बेसुकूं  यूं मत मनाओ ईद रहने दो

इबादत चाँद रातों की, वह भी सब्र के एवज़ 
है आबिद बेवुज़ू  पर , यूं मत मनाओ ईद रहने दो

गले मिलते थे गलियों में खुलूसे दिल से ज़ाहिद  तुम 
इतनी बेदिली! यूं मत मनाओ ईद रहने दो 

कोंई झगड़ा नहीं टोपी का नारंजी के रंगों से 
क्यों दिल में है ख़फ़गी, यूं  मत मनाओ ईद रहने दो

 न हो सुफ़ैद  तो जोगिया ही रंग तुम ओढ़ लो  यारों 
बेरंगीं पर ख़ुदारा यूं मत मनाओ ईद रहने दो 

       - सहबा जाफ़री