मुझे शिकवा नहीं कि
तुमने मेरा बुत तराशा है
मुझे दुःख भी नहीं
तुमने मुझे क़ैदी बनाया है
मुझे तुम सर झुकाते हो
तो मेरी आँख रोती है
मुझे खुशबू लगाते हो
मुझे तक्लीफ़ होती है
की तुमने मुझको क़ैद करके
फ़िरकों का ताला गढ़ लिया है
अपने पालनहार को
ख़ुद से भी छोटा कर लिया है
देखो ज़रा! मै भूखा खड़ा हूँ,
इबादतगाहों से बाहर निकल कर
ढूँढो ज़रा, मै ज़िंदा पड़ा हूँ
ऐन मस्जिद की रहगुज़र पर
मुझको पा लो तो, वादा करो तुम
कबूतर की मानिन्द खुला छोड़ दोगे
मुझे! अपने रब को, कायनात से
फिर से वैसे ही जोड़ दोगे
- सहबा जाफ़री