Tuesday 16 December 2014

गरज बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला !


शुरू उस रब के नाम से जो बहुत मेहरबान और रहमवाला है 
ऐ मेरे मौला !
 ऐ सब ऐबों से पाक परवर दिगार ! इंसानियत की पेशानी  पर " इक़रा " (पढ़ ) का  बोसा देने वाले , आज दिल जिस बेबसी में तेरे पास आया है , क्या वह दिल तूने नहीं बनाया ! इंसानियत को अम्नो-अमां के ज़रिये अपनी ख़ुशनूदी हासिल करने का हुक्म देने वाले , आज मेरे सवालात तुझसे हैं, तूने तेरेजल्वे से हैरान होती नज़र ए -इंसानियत को पढ़ने का हुक्म दिया , फिर "अल मुज़म्मिल" कह कर जागने का हुक्म दिया , और फिर क़लम के ज़रिये  अपने इल्म की खिड़की खोल दी , तो ये तेरे कौन से मानने वाले हैं  कि  जो आदम की नस्ल से तेरे दिए हुए हक़ छीनते हैं! इल्म की किताबों के साथ ज़ुल्म करते हैं और तरीक़त की खुशबू को मिटा डालते हैं! 

                ऐ रब !  तेरा पैगाम  पंहुचाने  वाले ने कहा था, इल्म हासिल करने के लिए चीन भी जाना हो तो चले जाना ! उसकी अपनी  बीवियां और बेटी  इल्म की ज़िंदा मिसाल थी और आज पूरी दुनिया को इल्म से रोशन करने वाले को मानने का दावा  करने वाले , ये क्या कर बैठे ! ऐ रब! इल्म से रोशन १३२ ज़हनो को इन ज़ालिमों ने फूँक डाला, एक झटके में ११००० इल्म की शमाओं  को बुझा डाला और कितनी माओं की कोखें उजाड़ दीं !
ऐ मालिक ये वे ज़हन हैं, जो खल्के -खुदा का रोज़ खून करना इबादत समझते हैं, पर जो भूल जाते हैं की लिबास पर मच्छर का भी खून लगा हो तो , इबादत क़ुबूल नहीं होती! 

               ऐ मेहरबान मालिक ! तूने ज़मीन पर पानी बरसाया , उस पानी को आदम के लिए " चश्मों और नदियों के रूप में ज़मीन में बसाया, फिर उस ज़मीन से खेतियाँ निकालीं और फिर अपनी किताब के ज़रिये ज़ुल्म को एक नहीं हज़ारों जगह हराम कर दिया , तो बता ये किस किताब के मानने वालें हैं, जिनके ज़ेहन तेरी  ही तख़लीक़ को नाबूद करते वक़्त तेरे ही खौफ से नहीं कांपे!!! 

                मालिक!  मोज़ेस को अज़ीयत देने वाले फिरौन को तूने हलाक़ किया, युसूफ-ए -दुर्दाना  को तकलीफें देने वालों को तूने बर्बाद किया ,  इब्ने-मरयम के खतावारों को तूने सज़ाएँ दीं , मोहम्मद को तंग करने वाले हाथों पर क़यामत तक की  लानत दी , ऐ रब्बा !!!  तुंझे पता है आज ज़मीन पर इल्म का क़त्ल हुआ है , वही इल्म जिसकी फैलने की उम्मीद लिए तू आखिरी नस्ले-आदम को  क़यामत तक भेजेगा , बता !!! बता आज तूने क्या सज़ा मुक़र्रर की ! ऐ रब! आज तेरे जलाल को कितना जोश आया !

ऐ मालिक ! तुझे उन तमाम माओं की कोख  के  दर्दों का वास्ता , जो आज उजड़ीं है, ज़मीन को इन ज़ालिमों से पाक कर दे, पाक कर दे मेरे रब !! 

आमीन 
तेरा एक बेबस बन्दा।  
   
    

3 comments:

  1. मालिक के घर देर है, मत समझो अन्धेर।
    थोडे दिन में दुष्ट सब, हो जायेंगे ढेर।।
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    सार्थक पोस्ट।

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  2. कुछ लोग धर्म का सहारा लेकर अधर्म करने पर तुले हैं। ऐसे लोगों के हाथ अगर धर्म की कमान आ गई फिर तो ऐसे वाक़ए होते रहेंगे। दुनिया का सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है। हम अपने कृत्यों को इंसानियत के तराजू से तौलें उसी हिसाब से आचरण करें तो फिर ऐसी नोबत आए ही ना।

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